यादों का कुछ ऐसा उछला तुफान है
गहराईओ में डुबा मेरा पुरा वर्तमान है
चाह कर भी डुब ना सकु, हाल मेरा बेहाल है
मझधार कस्ती को अब किनारा दुश्वार है
धुंधली सी मंजिल पर कुछ अनसुनी पुकार है
तैरने को मजबुर कर रही, जाने ये कैसी आस है
ना डुबना चाहती हुं मैं, और ना ही तैरना गवार है
ये कैसा वजुद है मेरा, जैसे सिर्फ मेरे अपनो का ही मोहताज है
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